☀☀सुभाषितम् ☀☀
न अभिषेकों न संस्कारः सिंघस्य कियते वने ।
विक्रमाजिर्तस्त्वस्य स्वयमेव मृगेंद्रता ।।
अर्थ - सिंह(शेर) को जंगल का राजा बनने के लिए राज्याभिषेक समारोह की आवश्यकता नही होती वह अपने कार्यों तथा साहस से स्वयं राजा बनता है ।
विपत्सु वज्रधैर्याणां संग्रामे वज्रदेहिनाम्।
संघो राष्ट्रविपत्काले सद्वज्रकवचायते।।
अर्थ - विपत्ति के समय पराकाष्ठा का धैर्य रखनेवाले को संग्राम के अवसर पर वज्र के सदृश दृढ देह वाले और राष्ट्र पर जब आपत्ति आती है, तब राष्ट्र को संगठित शक्ति ही उत्तम वज्र की तरह कवच बनकर बचाती है।
अमंत्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्।
अयोग्यः पुरूषो नास्ति, योजकस्तत्र दुर्लभः।।
अर्थ: कोई भी अक्षर ऐसा नही होता है, जिससे मंत्र नही बन सकता। ऐसी कोई वनस्पती ऐसी नही जिससे औषधी नही बन सकती है। कोई भी व्यक्ति का निरुपयोगी नही होता । केवल योजक(उपयोग जानने वाला) की आवश्यकता होती है।
inspiring
जवाब देंहटाएंVery good
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
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हटाएंKhup chhan ahe bhau
जवाब देंहटाएंBahot achha
जय हिन्द
जवाब देंहटाएंGreat work
जवाब देंहटाएंसारगर्भित पक्तियाँ🙏🙏
जवाब देंहटाएंसत्यं शिवम सुंदरम।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंशानदार
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